- परिचय gg
कुत्ते की पूँछ
Monday, May 23, 2005
Saturday, April 23, 2005
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* विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रमों में ( 2007 में ) महेशमूलचंदानी कुछ फोटो ggg
Wednesday, April 13, 2005
हाइकु कविताएँ
- हिन्दी हाइकु
संवेदनाएँ
मर गईं तो कैसे
हो कविताएँ।
***
पैसों का ढेर
नहीं पता सुख में
कितनी देर ?
***
एक ही रोटी
जली तवे पर क्या
खायेगा लाल?
***
दर्द ही दर्द
देता है सारा जहाँ
जाओगे कहाँ?
***
झोपड़ी जली
मैदान हुआ साफ
बिल्डर जीता ।
***
जब है स्वार्थ
तब तक है आस्था
अगला रास्ता ।
***
है सब कुछ
फिर भी ढ़ूँढ़ता हूँ
कुछ न कुछ ।
***
भूखे पेट को
रोटी क्या मिल गई
आस्था हिल गई।
***
तुम्हें खोने का
डर रहता सदा
मेरी ये सजा।
***
जरा सोच लूँ
तुम्हारें या अपने
आँसू पोछ लूँ।
***
तरसते हैं
छत दो वक्त रोटी
बात है छोटी।
***
आस्था‚ लगन
बंजर थी जमीन
अब चमन।
***
-महेश मूलचंदानी
कविताएँ
- ईश्वर तो नहीं हो...?
कोसो दूर हो
तुम मुझसे
पर यूँ लगता है
हमेशा साथ हो तुम मेरे
दिल की हर धड़कन
जपती है तुम्हारा ही नाम
लोग कहते हैं
ईश्वर हमेशा साथ रहता है
वैसे ही
तुम भी
हर पल, हर घड़ी
साथ हो मेरे
कहीं
तुम ईश्वर तो नहीं?
***
- दूरी के बाद भी
मैं भी कम्प्यूटर
ईश्वर एक उपगृह है
जिसने जोड़ रखा है
तुम्हें और मुझे
सैकड़ों मील की दूरी के बाद भी
बिना किसी तार के !
***
- खुशबू
क्या खुशबू लाये हो ?
कहीं ये खुशबू
तुम्हारी खुद की तो नहीं
जिसका होता है एहसास
तुम्हें
मेरे आने के साथ !
***
-महेश मूलचंदानी
ग़ज़ल
- [एक]
बोझ से दुहरी दिखाई देती हैं‚
ये सदी ठहरी दिखाई देती हैं।
दुःख —दर्द की बातें करे जहाँ‚
वो सभा बहरी दिखाई दोती हैं।
गाँव में आतंक है जिसका‚
सभ्यता शहरी दिखाई देती हैं।
अगस्त्य की तरह पीने लगे हैं‚
जो नदी गहरी दिखाई देती हैं।
जूठे बर्तन माँजती भूख में‚
सेठ की महरी दिखाई देती हैं।
***
- [दो]
है देश समस्याओं से तंग देखिये‚
और उन्हें सूझता हुड़दंग देखिये।
ताकतें फौलाद सी लिये हुए हैं जो
आज उन पे चढ़ रहा है जंग देखिये।
जो हमारा है वहीं गन्तव्य आपका‚
दोंनों नहीं हैं राह पर संग देखिये।
कीचड़ उछालकर हम‚ होली मना रहे
पिचकारियों में नहीं है रंग देखिये।
शांति बनाये रक्खें जो लोग कह रहे
शांति उनकी बदौलत है भंग देखिये।
सियासी दाँव—पेच का है दृश्य देश में
हम देख देख हो रहे हैं दृग देखिये।
***
-महेश मूलचंदानी
क्षणिकाएँ
- आडम्बर
कुछ लोग
आडम्बर में इतना अधिक
घिर जाते हैं
कि वे साबुन को
साबुन से धोकर नहाते हैं।
आडम्बर में इतना अधिक
घिर जाते हैं
कि वे साबुन को
साबुन से धोकर नहाते हैं।
***
- परिणय इति
बेचारे पति ने
कभी खुलकर कोई बात न कही
मुँह पर लगे ताले
और तिजोरी की चाबी
सदैव पत्नी के पास रही।
***
- ईद के चाँद
शादी के बाद
वे हनीमून में खो गए
और दोस्तों में
ईद के चाँद हो गए।
***
॥महेश मूलचंदानी॥
Monday, April 11, 2005
शर्त
उस दिन
समाज से मिट जाएगी
नीच-ऊँच
जिस दिन
सीधी हो जाएगी
कुत्ते की पूँछ।
***
-महेश मूलचंदानी
नमक
सब्जी में
नमक माँगो
तो पत्नी झिड़कती है
जले पर
खूब छिड़कती है।
***
-महेश मूलचंदानी
नमक माँगो
तो पत्नी झिड़कती है
जले पर
खूब छिड़कती है।
***
-महेश मूलचंदानी
पसंद
विवाह योग्य
कन्या बोली
वर
कैसा भी हो
वरूँगी
पसन्द तो
सास को करूँगी।
***
-महेश मूलचंदानी
कन्या बोली
वर
कैसा भी हो
वरूँगी
पसन्द तो
सास को करूँगी।
***
-महेश मूलचंदानी
चेतावनी
चेतावनी के बावजूद
लोग
सिगरेट पीना छोड़ते नहीं
क्योंकि चेतावनी
पैकेट पर होती है
सिगरेट पर नहीं।
***
-महेश मूलचंदानी
लोग
सिगरेट पीना छोड़ते नहीं
क्योंकि चेतावनी
पैकेट पर होती है
सिगरेट पर नहीं।
***
-महेश मूलचंदानी
माँग
होली के दिन
नेता जी ने इतनी पी ली भाँग
अच्छे भले बैठे थे दरी पर
कुर्सी की करने लगे माँग।
॥महेश मूलचंदानी॥
नेता जी ने इतनी पी ली भाँग
अच्छे भले बैठे थे दरी पर
कुर्सी की करने लगे माँग।
॥महेश मूलचंदानी॥
प्रमाण
वृक्षारोपण कार्यक्रम
चला है कितना जोरोँ से
यह बात
आँकड़े बताऍगे
या पूछ लें ढोरों से।
***
-महेश मूलचंदानी
चला है कितना जोरोँ से
यह बात
आँकड़े बताऍगे
या पूछ लें ढोरों से।
***
-महेश मूलचंदानी
विडम्बना
सरकारी बस
एक तो लेट चली
दूसरे दुर्घटना भी न टली
ऊपर से ये नारा
दुर्घटना से देर भली।
***
एक तो लेट चली
दूसरे दुर्घटना भी न टली
ऊपर से ये नारा
दुर्घटना से देर भली।
***
-महेश मूलचंदानी
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