- हिन्दी हाइकु
संवेदनाएँ
मर गईं तो कैसे
हो कविताएँ।
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पैसों का ढेर
नहीं पता सुख में
कितनी देर ?
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एक ही रोटी
जली तवे पर क्या
खायेगा लाल?
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दर्द ही दर्द
देता है सारा जहाँ
जाओगे कहाँ?
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झोपड़ी जली
मैदान हुआ साफ
बिल्डर जीता ।
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जब है स्वार्थ
तब तक है आस्था
अगला रास्ता ।
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है सब कुछ
फिर भी ढ़ूँढ़ता हूँ
कुछ न कुछ ।
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भूखे पेट को
रोटी क्या मिल गई
आस्था हिल गई।
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तुम्हें खोने का
डर रहता सदा
मेरी ये सजा।
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जरा सोच लूँ
तुम्हारें या अपने
आँसू पोछ लूँ।
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तरसते हैं
छत दो वक्त रोटी
बात है छोटी।
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आस्था‚ लगन
बंजर थी जमीन
अब चमन।
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-महेश मूलचंदानी